11-4-1962 बुधवार

हमे तकलीफ का विमोचन करना है, अपेक्षा का नहि!  अपेक्षा कुछ नही माँगती!  ज्ञान होगा तो आप अपेक्षा नही करोगे!

मिलनेवाला मिलना चाहिये यह संकल्प होता है, यह टप्पा है!  परमात्मा से मुक्ति चहाना यह आखिर का टप्पा है!  तुमारे सबसे नजीक है प्रपंच।जब खुदा प्रपंच चलाने के लिये रूपीया देगा तब वह परमात्मा दर्शन देगा, यह आत्मविश्वास पैदा करोगे।परमात्मा कैसा है यह बता सकते है!  पंचकोश का आखिर का कोश है-आनंदकोश! यह सच्चिदानंद स्वरूप है!  आज मामुली चीज का संकल्प करने के बाद और वह मिलने के बाद जो सूख या आनंद मिलता है उसी आनंद को लेकर आखिर को  आनंद के पास जाना है!  यहां 50आदमी आते है!  उसमे एक ही आदमी के साथ तुम बातचित करते है!  कारन उनके साथ तुमारी पहचान जादा है!  उस बातचीत के सरीखे ही हमे अपने संकल्प से ईश्वर के साथ जान पहचान करनी है!

हम लोगो से तुमे क्या प्राप्त हुआ?  सुख, दुख मिला होगा तो वह मिलने का कारन तुमही हो!  हमने तुमारे ही दुख का निराकरण बतलाया है! लेकिन परमात्मा से क्या मिला? आम देखने के बाद वासना जागृत होती है!  आम खाने के बाद आनंद, समाधान और तृप्ती होती है!  खुदा को मिलना यह वासना है!  अन्य-अन्य तरह की बाते देखने के बाद वासना पैदा होती है! लेकीन तृप्ती कब होगी? मै परमात्माको देख रहा हूँ!  सुख मिले यह वासना हुअी और वह सुख मिले तब परमेश्वर प्राप्ती होगी यह विश्वास होगा! आम खाने से रसनेंद्रिय की तृप्ती होती है!  वैसा बाबा का आशिर्वाद कौन से इंद्रिय को प्राप्त हुवा–पंचप्राण या पंचतन्नमात्र को! आप कहते है की मन मांगता है, स्थिर नही रहता!  यह कहना ठीक नही है!  मन उसी जगह है,  वह नही भागता, अपना अज्ञान चारो तरफ भाग रहा है!

आम खाया तब एक कलाक संतोष रहता है!  वैसा ही संतोष दूसरे को देना होगा तो और आम खरीद कर सकते हो!  बाबा की पूजा या सेवा करने के बाद जो एक क्षण समाधान पाते है, वह समाधान बालबच्चे को दे सकते हो क्या? वह क्षण दिन-दिन,  साल-साल ले ओगे तभी वह समाधान बच्चे तक पहुचाओगे!  दूवा एकने लिया तो दूसरे को नहि दे सकता!  आम दे सकोगे!  बाबा का दुआ अलाहिदा प्रकृती ने अलाहिदा तरह की सेवा करके पाना है!  घर मे दो सेवा कर के दूवा पाते है,  लेकिन बाकी तीन सेवा ना करने कारण दूवा नही पाये!  यह बात होने के कारण सेवा कर के जो सुख तुमे मिला है वह दुख होता है!  कर्म प्रखर है उन को आदत लगाना चाहिये! बच्चा उल्लूगिरी करता है लेकिन एकबार नोकरी को लगने के बाद वह ठीक रीतीसे चलने लगता है।वैसेही इधर उधर भागनेवाले कर्म को ठीक करना है!

जन्मऋणानुबंध से आया हुआ दुख का एक क्षण मे हम फैसला करते है वह हमारा अधिकार है!  लेकिन अज्ञान से जीवन मे आया हुवा दुख हम नही दूर करेंगे!  हम आप को ज्ञानी करेंगें और आप को ही दुख का फैसला करना है!  भाअी भाअीका झगडा यह अज्ञान से होता है!  बारा साल संसार करने के बाद पति-पत्नी मे वितुष्ट आया उसका कारन अज्ञान है, जन्मऋणानुबंध नही!  आपस मे अज्ञान से आयी हुअी दुष्मनी जाने के लिये अब संकल्प लेना है!  घर मे भाई है उनका ऋणानुबंध परिपक्व ना होने के कारण वह संकल्प नही लेता होगा! लेकिन वह संकल्प लेने के लिए तय्यार हो जाय इसलीए तुम संकल्प ले सकते है!  जन्मऋणानुबंध से नुकसान हुवा तो कर्मऋणानुबंध देगा। और कर्मऋणानुबंध से नुकसान हुवा तो खुदा देता है!

जन्म और कर्मऋणानुबंधसे प्राप्त हुवा दुख दूर करने के लिए तुमारी जिंदगी पूरी नही पड़ेगी वह हमने हाथमे लिया है। अज्ञानका दुख कियामन, तुम ने खराब क्या है।उन को तुमने ही ठीक करना चाहिये और यह संकल्प लेकर उसी मन को आज्ञा करना है की अब “ॐ श्रीसाईनाथाय नमः” इस मंत्र के अलावा कुछ भी करना नही है!  पानी से भरा हुआ बर्तन है!  उस बर्तन मे जादा पानी  डाला तो वह गिर जायेगा!  वैसा ही यह तुमारा शरीररूपी बर्तन सभी बातों से भरा है,  मै दूवा का पानी छोडता हूँ लेकिन वह बर्तन में ना रहते दुवा नीचे गीर जाता है!  अब बर्तन का पानी तुमको कम करना पडेगा! 

एक भक्त का मेरे लिये मन अच्छा है और एक भक्त का मेरे लिए मन दूषित है!  लेकिन उन के लिये तो मेरा मन अच्छा ही है!  यहा आनेवाले50 भक्त को बाबा की इस तरफ रखी हुअी तस्वीर देखकर आनंद होता है लेकिन एक भक्त ऐसा निकलता है की उनको वहा रखी हुअी तस्वीर जचती नही! यह क्यौं होता है? कान ना होते ही उन्होने अज्ञान पैदा किया है!  कोअी कहता है सगुण की उपासना कर के साक्षात्कार होगा!  कोअी कहता है निर्गुणकी उपासना करकें निरक्षर बन जाओगे!  निर्गुण या सगुण, ब्रह्मा या विष्णु,  कृष्ण या राम-इनमेसे किसकी उपासना श्रेष्ठ है या अच्छी है!  जिस उपासना से हमे संतोष होता है वह उपासना अच्छी है!

इस मार्ग मे बहुत गफलत किअी है!  पता नही लगता की असली खुदा क्या है!  आजतक परमात्मा कैसा है इसके बारेमे बहुत कुछ लिखा गया है!  परमेश्वर तो सीधा है लेकिन उनकी प्राप्ती करने के लीए निकला हुआ आदमी कितना विकृत है!  वह (ईश्वर) सगुण है, या निर्गुण है उससे हमे वास्ता नही है!  मानलो वह निर्गुण है तब वह जो भी कुच्छ देगा वह लेना नही चाहते!  कोअी कहता है मुझे साक्षात्कार हुवा है! यह साक्षात्कार हुवा आदमी को दसबार बुलाया तोभी सुनने नही आता!  (वास्तविक, अंदरसे बोला तब तुरंत मालूम होना चाहिये की यह आदमी अपने को बुलाता है! )ऐसे ये साक्षात्कारी आदमी के बाजू से गया तोभि उनको मालूम नहि होता!

ये लोगो ने सब मिट्टी कीअी है!  यह तुमारे देहमे कितनी बातें छिपी हुअी है यह बतलाया है!  बाबा के देह के अंदर एक ही बाजू है!  किताब में लिखी हुअी ‘श्री’ जलदी समझती है लेकीन खोपडी मे‘श्री’खुद लिखने के लिए समय लगता है!  हिमालय के चोटीपर देव है ऐसा कहा गया है। और साथ साथ तृणांकुर से ब्रह्म  तक ईश्वर है यह भी कहा गया है! ‘अपेक्षा मत करो’, ऐसे कहनेवाला को माँ-बाप नही होते।उनके बीना अपेक्षासे “अपेक्षा मत करो”,  यह कहने मे उनको कुछ नही लगता ।हम अपेक्षा ना करे तो फिर उनका नाम कौं ले? आमके झाडको मोसम आने के बाद फल आते है!

यह विश्वका विराट स्वरूप झाड है। उसको मोसम के अनुसार फल आयेगा! उसकी अपेक्षा मत करो यह अर्थ है “कर्मण्यवाधिकास्ते.. .. .. मा फलेषु कदाचन” कुदरत का धर्म बतलाया है!  आदमी के नीती का नही!