5/4/1962 पाडवा

आज बरस का पहिला दिन इसलिये खुशी मनाते है! आज के लिए फर्ज क्या है!गये सालमे कितनी गलती हुवी इसका पता लगाया क्या?गत साल की बात छोड दो.लेकिन आज कितनी गलती की यह देखा क्या? शायद आज तो गलती नही होनी चाहिये! यहां आनेवाली विभूती तुम्हारे जीवन को कीड लगी है! एक बार इस फकीर को जबान दी तो मरने के पहले हाथ पकड के पूछ लेगा! आपने जप पूरा करने का वायदा किया था लेकिन जप संकल्प के अनुसार नही हुआ! तुम्हारी मुरांदे खुदा परवरीश करे, लेकिन बारबार गलती हुअी तो कैसा चलेगा! आज किसी ने सोना खरीदा होगा! कपडा किया होगा,या घरमें मीठा बनाया होगा! लेकिन आजके दिनका फर्ज क्या? निम्न लिखित फर्ज हरएक भक्तने पूरा करना चाहिये!

1) सुबह मंगलस्नान होने केबाद मां बाप के पांव छू के उनको नमस्कार करना! उन्होने आपको जन्म दिया इसलिए सबसे पहले उनके चरणों को हात लगाना और बादमें हमको मिलना! यह आदत लगनी चाहिये! जिंदगीमें खुशीका दीन आया तो उनको पहले वंदन क्यौं की यह अपने आराध्य दैवत है! सर्व प्रथम मां, बाप, बादमे खुदा!

2) आज घर के चूले पर मीठा खाना बनाया होगा! भक्ति भावसे उस चूलेकी पूजा होनी चाहिये! वहाँ अपना अन्नोदक लिखा है! घर की सुहासन स्नान करने के बाद उसको गंधफूल चढाये! अग्नि जैसा धर्म नहि! एक आदमी का हो या पचास आदमी का हो सबका खाना यह पकाता है!

3) लक्ष्मी (अंगुठी) सरस्वती (कलम),पाठशालाकी किताबे पूजन होनी चाहिये! आपको सुख, शांती मिलने के लिए लक्ष्मी, सरस्वती आप के घरमें है! उनकी संभावना ना करते आप यहाँ कैसे आते हो?

4) साधन-पत्रिका, साध्यता के लिए दिअी हुअी पोथी और जपमाला कि जो तुम्हरी जीवन-नैया है इस तीर से उस तीर को ले जाने वाली वह जपमाला की भी पूजा होना आवश्यक है!

5) संदल-प्रसाद का पूजन होना चाहिये!

मानलो सालभर जितनी गलती नही हुअी उतनी गलती एक दिनमे हुअी है! यह गलती का अंदाज कर के अपने मन को पूछों की मेरे लिए मैने क्या किया है! दुवा की जरुरत है इसलीए यहाँ आये! बाहर के दुनिया को कौन दुवा देगा?तुमने दुआ पाया है यह आत्मचिंतन तुमारे पास है क्या! दुआ पाया इसका मायना क्या की पिछले काल मे तुमारे जीवन मे पाँच नुकसान की बाते थी तो दुवा पाने के बाद हमसे दो बात चली जानी चाहिये! हमारे लिए,घरके लिए,दुनियाके लिये मेरे पास क्या बुरा है इसका पता लगेगा तब क्या अच्छा चाहिये यह मालूम होगा! तुम को जैसा दुवा मिलता है वैसा बाहर की दुनिया को भी दुवा है! बाहर की दुनिया भी कितनी किसी ना किसी दैवत की भक्ती करती है! तो यह दूवा पाने के बाद वह दुवा अन्य दुनियावालो को आप देओगे यह आपका ख्याल गलत है! दुनिया मै ऐसी एक भी चीज नही है की जिनको दुवा नही है! तुम को दिन-रात दुवा लगता है, तो तुम दुसरे को क्या देओगे?

तुम को दुवा है,अन्य दुनिया के लोगों को भी दुवा है, इस दोन्हो में फरक क्या है! दुनिया चाहती है की गत सालमे ये-ये बाते हमे मिली अब इस सालमे और ऐसे कितनी बाते मिलेगी! और तुम चाहते है की इस बात के अलावा भी कोई चीज है वह तुम को मिले!  वह बाबानें तुम्हारी काया,वाचा ठीक की! मन तुमने ही ठीक करना चाहिये! तुम्हारा मन ना मै ठीक करू या ना कोअी अल्ला या परवर दिगार ठीक करें! उस बाबा ने संकल्प दे के इस काया वाचा से गत पचीस जनम का भी किया हूआ पाप धोने का हवाला दीया है लेकिन तुम्हारा मन धोने का इतल्ला उन्होंने नही दिया! तुम्हारे अज्ञान से इसी जनम से तुमने तुम्हारा मन खराब किया है अब वह साफ तुमे ही करना चाहिये! मन साफ होने के लिए पारायण चालू किया है! तीन साल के पहिले और आज होने वाला पारायण इनमे कोअी फरक मालूम होता है की नही! तब तीन भक्त की पारायण होना चाहिये ऐसी इच्छा होती थी और बाकी के छे भक्त मजबूरीसे,संख्या पूरी करने के लिए पारायण को बैठते थे! पारायण कर के हमने तीनो की इच्छा का विमोचन किया और साथ-साथ छे भक्त की वासना का भी विमोचन किया! अब जो पारायण चालू है उसमें प्रारंभ मे ही इच्छा-वासना का विमोचन करते है और इसलीए संकल्प में यह पारायण करने से ऐहिक सुख की अपेक्षा जीवन में न आये इसलीए प्रार्थना करते है!

घरकी सास मरने के बाद उसनें शिवलीलामृत का पारायण कर के जो पुण्य जोडा है वह उनके साथ जाता है,लेकिन उनका 10 तोला सोना उन के  बहु को मिलता है! उनकी इच्छा उन के साथ चली गयी,वासना यहा रही! यह जीवात्मा वासना रखता है इसलीए उन को श्राध्दपक्ष की जरुरत लगती है! तो आज आम-लोग हमें वासना से मिलते है यह इच्छा से?

हाजी हजरत मलंग बाबा के जमाने मे लोग 12 आना सेवा करते थे, खुद का विमोचन अपने-आप करते थे और 4 आनेका दूवा मांगते थे और इसलिए खुदाने हाजी बाबा को 4 आना दीया ! महंमद जलानी साहब के वख्त जमाना बदल गया! दुनिया आठ आना सेवा करके आठ आनेका दूवा माँगती थी.उसलिए उनको आठ आना मिला!साईबाबा के वख्त दुनिया 4 आना सेवा और 12 आना दूवा माँगने लगी और इसलीए साईबाबा को खुदा ने 12 आना दिया! अब खुदा को मालूम हुआ की आजकल लोग सेवा कुच्छ नही करेंगे लेकीन बंदा रूपीया का दूवा माँगेंगे और इसलीए दादा को याने समिती को बंदा रूपिया मिला है!

अब बोलो तुम्हारी निष्ठा संदल के प्रसाद पर है की समितीपर? समिती के कार्यपध्दत के अनुसार संदलका अनुष्ठान लगाकर चार आना मिलता है और अनुष्ठान के पूर्तता के लिए 11 माला श्रीसाईनाथ का जप करने से 12 आना याने कुल मिलके 1रूपिया मिलता है!अब बोलो जादा निष्ठा बाबा पर है या संदलके प्रसाद पर? संकल्प के अनुसार11माला जप ना करते हुवे खाली संदल का प्रसाद पूजन से इच्छा पूर्ती होनी चाहिये,तो तुमको सिर्फ4आना मिलेगा और इसलीए तुम को खुद को 12 आना ठीक होना पडेगा! हाजीमलंग बाबा के जमाने से आजतक आदमी को चार आना कम पडता है इसलीये संदल का प्रसाद है और वासना से 12आना कम पडते है इसलीये सदगुरूनामस्मरण है! समिती की हरएक बात कायदे से चलती है!

अब सोचो की हम कहाँ है? हजरत बाबा को जन्म लेने के 800 साल पहले मजबूरी या हुकुमत हुवी,तब का यह प्रसाद है! फिर,सिर्फ अनुष्ठानसे काम होने के लिए तीन बार अनुष्ठान (4X3=12 आना) लगाना पडेगा! बाबा ये हारे कपडे मे दिया हुआ प्रसाद मे क्या-क्या बाते छुपी है ऐसा सवाल कभी बाबा को पूछा है क्या?आजतक संदल का अनुष्ठान काम होने के लिए लगाया या काम ना होनेसें जो फिकीर लगी हुवी थी उसके लिए लगाया! आम तौर पर बहुत से लोगों ने फिकीर के मारे अनुष्ठान लगाया और उनकी फिकीर कम हुवी! अब काम के लिए न लगाने के कान शायद काम नही हुवा होगा! तुम को सोज-समझ है, तुम ज्ञानी हो तब ऐसे कैसे अनुष्ठान लगाते गये! अगला साल आपको खूब नशीबसे गुजरे ऐसा दूवा दे के मै चला जाता हूं आपकी बिदा लेता हूँ!