8-3-1962 रमझान ईद. प. पू. हाजी बाबा.

आज कल भक्त रंजिस है! जिंदगी मिलाना चाहता है! दुवा देते है, लेकिन काम क्यों  नहीं बनता,सवाल बडा, लेकिन दुख भी बडा! यह कार्यपध्दत तमाम दुनिया को आबाद करने के लिये स्थापित हुए आज दस साल हुवे! अभितक पहचाना की नही! हम दिया लेकिन आप समझ जाना चाहिये! हम पत्थर देंगे,भक्त होगा तो उनका प्रसाद कर के स्वीकार करेगा, लेकिन नही समझनेवाला उसको फेक देगा! समझदारों के लिये यह बाबा इतनी बहाल चीझ है!इनकी उमर सबसे छोटी है! अपने पास दुआ है बरकत का! लेकिन हम दुवासे ज्ञानी नही करता! मै इस ख्यालमे हुं की इस को दे दूं जो यह सम्हाल लेगा! लेकिन अबतक नही सम्हाल सका!

आप को लगता है मै आता नही लेकिन मै उनके साथ ही हूँ! रूपिया ही मोहोर और निशानी,दोन्हो चीझ साथ होती है! माँ का दूध हजम करने के बाद म्हैस का दूध हजम कर सकते है! लेकिन दुनिया का राज दिया तो भी फिर वह दूध नहि मिल सकता! मै रहता तो तुम और खराब हो जाते! आप को ना कहते उनके झोलि मे डाला है! लेकिन उन को तो जरूर कहाँ है की इन को आबाद करो! वह चीज है लेकिन ना समझनेवालो को बडा दुख होता है!

उन्होने खुदा के साथ लढत लढी है! उन्होने कहा है की मुझे हांसिल करने के लिये 12 साल लगे होंगे लेकिन मेरे भक्तको 12दिनमें मिलना चाहिये! दुख की बात है तुम को कहा की 12 दिन खामोष बैठो तो आप नही बैठ सकते! उसी 12 दिन में ऐसा बैठा तो चलता ही है! उन्हो नें अपनी कुर्बान की, की आगे की चिराग सत्वकी और कस की पैदास बन जाय!

भारतमें रामराज होना चाहिये लेकिन पहले रावन मारा जाना चाहिये! कब्जे मै दे दीया हे! देंगे जरूर,लेकिन सबूरी चाहिये! जिंदगी मे बरकत,लेकिन ज्ञान लाख रूपिया का रखोगे तो बच्चे आबाद हो जायेंगे! उस बाबा को कम नजर से नहि देखना और कम दिल से नही मिलना! बाबा क्या शास्त्र है यह समझ में नहीं आया!तुम्हारी बैठक तेढी थी!उन्हो नें आदब लगायी!बारीश गिरती है तो छत्री खरीद करना!दुख समझ के छत्र खरीदना! छत्र बारीश के साथ मुकाबला करे गा! तुमने अपने पर मुकाबला लिया! चिलखत चढाते है गोली के लिये! बारीश रोखना गुन्हा है,वह चाहे इतना गिरने दो!आप के पास छत्र है, फिर डर क्यौं?

अमृत चीझ क्या है वैसा दुख,ज्ञान,अज्ञान,दुख कितना हमने किया उतना! बरसात 4 महिना गिरता,8महिना अनाज मिलता है,आप खाना खाते है! तुम तो पांच-पांच साल दुख दुख कर के चिल्लाते है! कितना गहन विषय बतलाते है! कहां तक आये है यह समझेगा तोही कहां तक जाना है यह समझेगा! अरमान उम्मीद यानें कर्मेंद्रिय बादमे ज्ञानेंद्रिय ओर ही बादमें चैतन्य यह, तीनो का ज्ञान होना चाहिये!चाय एक से दस कप तक पिने लगे! जिंदगी परायी हुअी! ज्ञानेंद्रिय की सत्ता से चार कप पीने लगे!उससे दिन कैसा गया,अध्ययन करना!जैसा चायसे प्यार वैसा ही नामस्मरण के कितने माला से प्यार है!जिंदगी वापस लायी ज्ञान और चैतन्य से।दुख कब दूर होगा की जब व्यसन और दुखमें चैतन्य डालोगे तबी दुख जीवन के साथ आयेगा! पहला खट्टा बादमें मिठा! बाबा को छोटा मत समझो! अपने दिल के मुताबीक बनाना चाहता है!एक चीज (बाबा) लाख चीजमें है! हर वख्त रूपीया नही माँगना! हर वख्त कामकाजको दुआ नही माँगना! भगवान तू मिला तब रूपिया भी मिला! लज्जत है तो खाना, नही तो वीष! अरमान ही पूरा करने के लिये नही तो और अन्य बाते देने के लिए बैठा है!

“श्री” इससे दुनिया चालू हुअी “ज्ञ” तक चलो लेकिन “श्री” पोछो मत (“श्री” पुसू नका.) काम के अलावा भी मिलो!गादी के लिये गये तो बैठना होता है,बादमे पान सुपारी होती है और बादमें लड्ड़ू खिलाये जाते है! तुम तो सिर्फ लड्ड़ु के रिस्तेदार है! एक क्षण भी जीवन में नही जाना चाहिये! मैने जेबमे पैसा डाला,वो जेब मे खुद जाना चाहता है! जीवन निश्चित करके बिना काम से एक दफे मिलना! घर का चाय रोजाना मिलने से फरक मालूम नही होता! दूसरे के घर चाय लिया वो तुरंत फरक मालूम हेता है!गंगा मे पत्थर होते है उनको तो रोजाना स्नान होता है लेकिन प्रायश्चित्त के लिए स्नान करनेवालो को संकल्प लगता है! उनके पास पाँच रूपीया माँगा तब वो देता है! चाहता है की बाकी के तीन रूपीया अभी देकर इतरेजन न खाये जाय!वैसा दुसरे को खाने नहीं देंगा!

तुमारे घरमें उन्होने चूवें के लिये पिंजरा लगाया! नहि समझा और तुम अटक गया! अब तोडो मत चुपचाप निकल आवो! अब वहि बाबा तुमको निकालेगा! तुम बच्चे बनना चाहिये लेकिन बच्चे के तरह नहि करना चाहिये! दुनियामे नही तो ख्वाबमें भी तुमनें “मै दुखी हूँ”ऐसी ग्वाही नही देनी चाहिये इतना हम करना चाहते है! यह चांदी की बाटी तुम्हारी नही है तो हाथपर क्यौं रखी! बाटी तुम्हारी नही फिर जिंदगी किस की है! यह जो रेवडी है उसको मिठ्ठास शकरनें लायी है!  झाडने कुर्बानी की और फूल दीया! ये सब चला जायेगा!वैसा ही काया,वाचा,मन चला जायेगा, लेकिन मिलाया दुवा दिल अमर रहेगा!