7-4-1962 शनिवार प.पू.हाजीबाबा

आप लोक काम पुरा होने के लिए संदल प्रसाद का अनुष्ठान लगाते है!  लेकिन अनुष्ठान काम के लिए नहि लगाना तो कर्म का चढ-उतार जादा, उसके लिए अनुष्ठान लगाना! 

चढ जादा और इसलिए इस प्रसाद को हाथ मे लेकर वह चढता है!  आप की जो मामुली सेवा चली है उससे कर्म नहि छुटेगा!  अनुष्ठान लगाकर तकलीफ 1 साल होने वाली होगी तो वह 6 महिने पर आयेगी!  कोअी कहता है कि एक बार ‘प्रसाद’ कर के घर मे दिया, तो अनुष्ठान की जरूरत क्यौं?  जैसा माँ कों अपना बेटा मालूम होता है और यह पहला,  यह दूसरा,  यह तीसरा बेटा, ऐसा ना कहते हुवे हरएक बेटे को उन के नाम से पुकारा जाता है वैसा ही प्रसाद पूजन के बारे मे है!  आप अनुष्ठान लगाते है और मन मे शंका लाते है की काम होगा या नही!  प्रसाद के बारे मे शंका माने बाबा के बारे मे शंका! फिर मन मे आने लगता है की यह दर्गा बाबा का है या और किसी का?

अबतक मैने अनुष्ठान नही लगाया इसलीए मेरा काम नही बनता,  ये ख्याल गलत है!  अनुष्ठान ना लगाने से नही तो कर्म की तीव्रता के कारन काम नही बन सका!  काम होना यह अपेक्षा क्यौं करनी पडती है!  तो काम है इसलीये नही तो कर्म तीव्र है इसलीये आप काम पूरा होने दो ऐसी प्रार्थना करते है!  लेकिन कर्म की तीव्रता वह अपेक्षा पूरी नही करता है! हमारे वख्त जमाना और ही था!  उस वख्त लोग सात्विक वृत्तीसे गुजारा करते थे! उन को चार आने की ही जरूरत थी!  आज लोग सेवा नही करते और रूपीया का दूवा माँगते है इसलीये समिती को बंदा रूपीया दिया है!  आज जिंदगी मिली है उसका बोझ कितना यह समझ लेना!  6/8  जनम का बोझ होगा वह बोझ कम करने के लिए संकल्प नामस्मरण है और प्राप्त जन्म मे जो बोझ है वह कम करने के लिए संदल का अनुष्ठान है! जिंदगी मिली है ना आखिर तक उठाने के लिए या सेवा करने के लिए या मेरे पीछे लगने के लिये!  आपका बोझ बहुत ही कम हुवा है ऐसा जब मुझे मालूम होगा तब मै आप को सेवा ना करते हुवे सिर्फ नमस्कार कर के जाने के लिए अनुज्ञा देंगे!

जब आप दुकान पर शक्कर लेने जाते है तब काटे की एक थाली मे शक्कर और दूसरी मे वजन डाला जाता है!  आप के जनम की दो थाली होती है!  एक गत और एक चालू जनम की! वजन क्यौं डालता तो कितनी शक्कर मांगी है उतनी मिलने के लिए!  जब शक्कर चाहिये तब दूसरी थाली मे उतनी सेवा होना चाहिये!  तुमारे काम से हमे तालुक नही है!  पेट-दर्द कम करने के लिए दुआ नही तो बोझा कम करने के लिए! हमे मालूम है की आखिर मे तुम भगवान को ही दूषण देने वाले है!  हम चले पूरब और तुम चले पश्चिम!  तकलीफ ख्याल मे लेके प्रसाद लेते है और तकलीफ के लिए अनुष्ठान लगाते है!  यहाँ आप को जो विषय कच्चा है वह सीखाया जाता है!  काया,  वाचा, मन का इतिहास और विकृती का गणित सिखाया जाता है!  सौ साल हम देते गये!  आप की अपेक्षा बढी!

मन के मुताबिक दे दे तो सेवा नही घडेगी!  हमारी वफादारी तुम्हारे मन के मुताबिक नही लेकिन जनम के मुताबिक रस्ता बनाकर देते है!  पैसा देना इसमे सवाल ही नही, लेकिन रूपिया मिल के क्या करोगे!  रुपिया पाके लुप्त उठाना यही जिंदगी नही है तो उससे भी जादा कुछ लेना चाहिये!  हम कुछ देते नही और देंएंगे भी नही!  यहाँ माँगने का कारन क्या हुआ!  गुरूकृपा नजर आने जैसी चीज नही है!  रुपिया जेब में मालूम होता है!  विमोचन हो रहा है इसका सबूत क्या!  गाव मे बिमारी इसलीये हमे दवा लेना पडता है!  मैने पैसे देने के बाद भी पैसे की कीड लगी!  कारन मै नही था और तुम भी नही थे!  कारन कर्म था!  एक लाख रुपीया देनेवाला मिला लेकिन लेनेवाला भी आ गया!  घर मे मिठाँई ढांक कर रखते है और चूँवे के लिये मूंगफली रखी जाती है!  चूवे के सरीखे बेफजूल खानेवाले होते है। वो आपकी मेहनत का न खाय इसलीए दूवा आ रहा है और भेजते है!  दूवा खाने से कर्म मरता है तगडा नही होता,  पैसा दे दो, उसमे से कुछ बच्च्चे के लिए रखैंगे यही तुम्हारा ख्याल है! लेकिन बच्चा पैसा गुमानेवाला है कारण तुम्हारा कर्म उनके जीवन में जाता है!

ये लाल फडके में बांधी हुवी पोथी जिंदगी भर पढना नही है!  बोजा कम हुआ तब बोले गा अब पारायण करने की जरूरत नही!  वख्त पडा तो तुम्हारा बच्चा पारायण करेगा!  इस जिंदगी में खुदा मिला क्यौंकी तुम्हारी परेशानी और जन्म ऋणानुबंधको लगा की इस को बहोत जन्म लेना पडा! और अब इसको छुडाना चाहिये!  और इसलिए जन्मऋणानुबंध मे खुद को छुडाने के लिए तुम को बाबा के चरणो के पास लाया!  यहाँ आकर तुम बार-बार सवाल पूछते है!  मै दूवा देता हूँ लेकिन घर जाने के बाद जन्मऋणानुबंध कहता है, “गधा मै छुटना चाहता हूँ और यह गधा बाबा के पास काम होने के लिये दूंवा मांगता है!  और इसलीए हमारा दूवा होते हुवे भी आप का काम नही बनता!  तुम्हारा जन्मऋणानुबंध लेने के लिये कोअी राजी है क्या?  लडके लेते है क्या?  कोअी लेनेवाला होगा तो आपके हाँथपर अक्षता देकर आपका ऋणानुबंध उनके पल्लोमें डालकर आप को छुडायेंगे!  हम उतने समर्थ है!

जिंदगी का खेल सिधा नही है!

वाल्या कोली का पाप लेने के लिए उनकी अवलाद तय्यार नही थी की जिनके सुखके लिएही उन्होने वाटमारी कीई थी!  तुम तुम्हारा ऋणानुबंध बरदास्त कर सकोगे लेकिन वह तुम्हारा ऋणानुबंध तुमारा लडका बरदास्त कर सकोगे लेकीन वह तुम्हारा ऋणानुबंध तुम्हारा लडका बरदास्त न करने के कारन बिछाने पर पड जायगा!  उनकी काया, वाचा, मन पंचतत्व, तन्मात्र तुमारे काया-वाचा से दूसरा है!  जन्मऋणानुबंध छूटा तब कर्म और जिंदगी से छूटा!  लेकीन आपकी उमर 50 साल की होगी तो तुम्हारा ऋणानुबंध लेनेवाला लडका भी 50 सालका बनेगा, वह सूक जायेगा! आपने अध्ययन किया होगा तो आप को मालूम होगा की कर्मविमोचन का प्रसाद लेने के बाद बच्चे के मुखपर तेज आ रहा है! प्रसाद लेने पहले तुम्हारा जन्मऋणानु बंध बूढा था और बच्चे भी बूढे थे! तुमने संकल्प करना रोका तो तुम्हारा ऋणानुबंध सबके जीवन मे थोडा-थोडा जायेगा। तुम्हारा ऋणानुबंध तुम ऊठा सकता है, दूसरा नही!  ये सभी बातोका हम विभूती नें अध्ययन किया है!

अपने जीवनपर क्या असर होता यहभी देखा है!  तुम मिले इसलीए प्रसाद देना चालू नही किया!  कुटुंब माने घर मे पाला हुवा कुत्तासे लेकर घर मे काम करनेवाला नौकर आता है!  उस नौकर का ऋणानुबंध जीवन मे ना आ जाय इसलीए खुद का नाम,  पिता,  आडनाव,  गोत्र और शाखा का उच्चार करने के लिए कहते है!  मै कुटुंब प्रमुख इतना ही उच्चार किया तो उसमे नौकर का भी ऋणानुबंध आता है!  अधिकारसे संकल्प नही देता तो तुमारे पातक प्रमाद, कर्म, सबको भोगना पडता!  तुम मरे तब अगले जनम तुमारा कर्म तुम भोगना उससे बच्चे को तकलीफ नही होगी!  हर एक का ऋणानुबंध उनके साथ ही रहेगा!  जब तुम ईश्वरवादी बनते हो तब तुम्हारा ऋणानुबंध भागकर बच्चेमें घुस जाता है! कारन ईश्वर का अधिष्ठान तुम्हारे हृदय मे तुम बांधते हो!  ऐसे बाहर के दुनिया मे कई एक लोग है की जो ईश्वरार्चन करते है! लाख कमाते है लेकिन सुख, समाधान नही पाते!  उसको सेवा कर के शांतता लगती है लेकिन सब खाने के लिए आता है!

आज तक ईश्वरवादी लोगोंने एकही ख्याल किया, कुटुंब का नही किया!  यहाँ जन्मऋणानुबंधकी गाठ तुम्हारी काया,  वाचा,  मनसे लगायी है!  एक बोजके लिए संकल्प और दूसरे के लिए संदलका प्रसाद है!  तुमारा भाअी संकल्प नही छोडता कारन कर्मऋणानुबंध अबतक परिपक्व नही हुआ और इसलीए सदगुरूसन्निध आना नही चाहता!  तुमारे पांच जनम बाकी है और भाई के 8 जनम बाकी है! उनका ऋणानुबंध खुद छुडाना नही चाहता!  वह जब इजाजत देगा तब तुमारा भाई अपने-आप यहां आयेगा!  इस काया,  वाचा, मनसे तुम तुमारा कर्मऋणानुबंध पुरा करते है!  बचपन मे ही तुमारे बच्चो की काया, वाचा,  मन हम चाहते है!  बचपन मे ही उनको हमारे हाथमे दे दो!  बीस सालके बाद उनको, हाथमे देकर नही चलेगा!  घर मे खाना तयार होता है तब मां सबको बुलाती है, वैसाही इस संकल्प से सब को आवाहन कियाहै, दुवा है!  खाना खाने के लिए बुलाया तोभी सभी बच्चे एकसाथ नही आये!  कोई ना कोई तो पीछे रहता है! वैसा ही कोई आज संकल्प लेगा और कोअी कई दिन के बाद लेगा!  जो बुलातेही खाने के लिए आता है उनको भूक लगी हुअी होती है और उनको अच्छी तरकारी मिलती है!  बादमें आनेवाले को मस्ती होती है, और तरकारी का रहा हुआ पानी मिलता है! 

मैने 800 साल गुरू के पास अध्ययन किया है और किस बातसे दुनिया उध्दरती है यह सीख लीया!  शादी हुअी तब तुमारा कुटुंब माने तुम,  तुमारी पत्नी और बच्चे होते है!  परगोत्र के लडकी के साथ विवाह होने के बाद उन का तुमारे कुटुंब मे समावेश हाना चाहिए! संदल के प्रसाद में ताकद बंदा रुपिया की है लेकिन उस वख्त मांग चार आनेकी ही होनेके कारण खुदाने हमे दूवा चार आने का दिया है! समिती का दूवा रुपीया का है लेकिन तुमने उसकी किमत 4आना की है!  वैसा ही देखा जाय तो दूवे की किमत तुम कम नही कर सकते है बल्की तुम तुमारी ही किंमत कम करता है!  तुमारा कहना यही है “जया मनी जैसा भाव,  तया तैसा अनुभव” नामस्मरण में इतनी ताकद है की एक माला सेभी विमोचन हो सकता है! आप जब 11 माला नामस्मरण करते है तब एक माला तुमारे काम आती है!  घर में दस आदमी होगे तो उन का विमोचन होने के लिए 11 माला काफी है, लेकिन नामस्मरण कैसा होना चाहिये की उपर से छत भी गिरा तो भी हम विचलीत नही होंगे!  इतनी तय्यारी है क्या?

घरमे घडी होती है!  उस घडी के अंदर एक डबी होती है, उसमे एक चावी होती है और उस चाबी को अन्य यंत्रा के साथ जोड दिया होता है!  वह जब छुटना चालू करती है तब हम को समय मालूम होता है!  अन्य यंत्र की जोड ना देते वह डबी ऐसी ही रखी तो कुछ नही होगा!  तुमारा जन्मऋणानुबंध हम स्थिर नही करना चाहते है!  वह जब स्थिर होगा तब कर्म स्थिर होगा! फिर तुम खाना, पीना छोड़ देओगे! हमने तुमारा ऋणानुबंध स्थगित नही तो चलित किया है!  तुमको ऐसा लगता है की इतनी सेवा करता हूं, पारायण करता हूं, लेकिन मै (तुम) अभितक स्थिर नही हो सकता! इस बात से तुम रंजिस है!  तुम अस्थिर नही हो! अस्थिर होते तो संकल्प नही करते!

तुमारा जन्मऋणा नुबंध चलित किया है वह जाते जाते तुम को हिला के जायेगा यह मुझे मालूम है!  कही जमाने के पहले लोग अपने खुद का विमोचन करवा के लेथे थे!  घरमे वैश्वदेवसे लेकर वाजपेय, अश्वमेध यज्ञ तक, हो सकता है लेकिन वाजपेय, अश्वमेध से विमोचन कुटुंब का नही होता!  और अच्छी परिस्थिती मे कितने लोग यह यज्ञ का खर्चा करने की ताकद रखते है!  आज तक इस मार्ग से जानेवालो ने परमात्मा समझने की कोशिश की!  उनको जो भी कुछ मिला वह देने के लिए तय्यार नही थे!

हम झोलीमे से देने के लिये तयार है, लेनेवाला चाहिये!