8-1-1962 प.पू.हाजी बाबा
वासना बाहर से आती है । इच्छा अंतर्यामी से आती है । भूक लगना यह अन्नमय कोश का धर्म है । यह इच्छा है । लेकिन पकोडी खाना यह वासना है। वासनारहित अपेक्षा माने इच्छा । इच्छा के पीछे आत्मा का अधिष्ठान होता है, और वासना के पीछे इंद्रिय का होता है । इच्छा जनम से आई और वासना बाद मे पैदा हुअी । अपेक्षा के पीछे इंद्रिय और इंद्रिय के पीछे आत्मा और आत्मा के पीछे खुदा होता है । दुसरे का देखकर इंद्रिय को वासना होती है । मन को इच्छा हुअी तो वह खुद पैदा करने की कोशिस करे गा । मोटर मिलनी चाहिये ऐसी मन को इच्छा ह्अी तो मरने के बाद वह इच्छा आत्मा के साथ जाती है । फिर जनम को आया तब वह इच्छा देखकर मुझे तुम को मोटर देने पडेगी । मोटार की वासना होगी तो देह छोडने के बाद आत्मा के साथ नही आती ।वह वासना यहाँ ही रहती है और कोअी एक चौक मे वह वासना खडी हो के मोटार से मोटार टकराती है, कारण दुसरे लोग मोटार मे बैठते है और इन को नही मिली थी । अबतक जो बारा साल सेवा की उसमे दस साल सेवा इंद्रिय से हुअी और एक साल सेवा इच्छा से हुअी।वह एक साल खुदा को मिलने के इच्छा से सेवा की । उस एक साल सेवामे आज बारा साल हम को मिलने की इच्छा रखते है। दुख इंद्रिय को मालूम हुआ और इसलिये जप करते हे। लेकीन मन को दुख मालूम नही है। दुआ कम पड रहा है और इसलीये भेज रहा हुँ ।
नित्य साधना से बाबा का लाभ हुआ, कृपा का लाभ नही हुआ । दादा को कृपा मिली है । दादा दुसरों का दुख दूर कर सकता लेकिन तुम नही कर सकते। कृपा का अंदाज करने के लिये शुक्रवार का गट दिया है । संवेदना लेनेवालो को फायदा नही होता इसका मायना यह नही है की, वह गलती कर रहा है, आप कृपा बढकर लेनी चाहिये । मै सामने आया हुआ भक्त को आशिर्वाद देता हुँ,ऐसा नही कहता की, तुम पात्र नही हो । मुझे मालूम होता है की,यह भक्त प्रसाद उलटा लगाने वाला है, तो भी मेरा दुआ देने का काम चलता ही है । मै कहता हुँ उनके मुताबिक यह नही चलता ऐसा कहना माने उतनी कृपा कम पड रही है।
दादा को कृपा प्राप्त हुअी है इसलिये वह किसी को बुरा नही कहता। लाख रुपीया कमाना है तब जितनी कृपा प्राप्त होना चाहिये उससे लाख गुना कृपा प्राप्त होनी चाहिये तब ही तुम लाख लोगो को मिल सकोगे ।मेरे झोली मे दुआ है लेकिन आप किसमे-किसमे लेओ गे । मनपर दुआ लेना होगा ता वह (मन) घरवाली को दे डाला है । अब दोन्हो बुढे हो गये और साथ-साथ मन भी बूढा हुआ है । काया और जबान भी बूढी हो गयी है । आपका सोना करना चाहता हु, लेकिन कैसा करे । जीव को तुमने पहचाना नही और वह कुछ करना चाहता है तो उस को करने देता नही। जीवात्मा शेर जैसा है । खुला शेर जंगल को हिलाता है । लेकिन एक बार जाल मे फस गया तब चिल्ला-चिल्ला कर उसीमे ही नींद लेता है । ताकद इतनी है पूरी दुनिया मे जबान उछालकर बोलेगा । हम जाली काट रहे है । जब कटे जाली से बाहर आयेगा तब जंगल का मंगल हो जायेगा ।
आजतक ताकद बढाकर मजबूत बना है । सात जनम का जाला उपर गिरा है और फिर तुम जाला डालते है, इतना की उस शेर की पूंछभी नजर नही आती । जीवात्मा को शरीर काया से अलग निकाल ना यही दुआ है । संकल्प माने अपनी प्रेरणा से निश्चित जगहपर जाने के लिये काया,वाचा मनसे तयार होना । तुम दफतर जाते है । घर के बच्चे नकल करते है, लेकिन दफतर घर नही आ सकता । अबतक अपेक्षा साथ मे लेकर खुदा को मिलने निकले, अब संकल्प कर के मिलने के लिये जाना है। नामःस्मरण संख्या 1100 वह अपना जाने का तिकीट है । जब चार साल के पहले यहाँ आये तब बहोत कुछ बाते करते थे ।
समाधी,साक्षात्कार,इस के बारे मे बहोत बोलते थे ।उस वख्त मै सुन लेता था । अब तो कुछ बात नही करते । जिस के पास5मण अनाज है वह जोर-जोर से चिल्लाकर अनाज बेचता है । उनको लगता है की अपने जैसे बेचनेवाला कोई नही है । लेकिन जब अपने पासही दुसरा बेपारी आता है, की जिस के कई खंडी अनाज है,तब 5 मण अनाजवाले का आवाज बंद होता है । थोडे ही समय मे 5 मण अनाज बेचकर खतम होता और बेचने के लिये कुछ बाकी नही रहता । इस वख्त बाजू मे आया हुआ बेपारी बडे थंडे रीती से अनाज बेचता है । आखिर मे वह पाँच मण अनाज बेचनेवाला उसके पास जाकर कई मण अनाज खरीदता है और बेचने लगता है ।आजकल तुम्हारा ऐसाही हो रहा है। पहले अये तो बहोत बाते की। वह खतम होने के बाद अब हमारे से कुछ सुनकर वही बाते दुसरे को सुना रहे है। तुम को तुमारा घर ओढ रहा है। साथ-साथ मे भी ओढ रहा हुँ । मै और घर स्थिर है लेकिन तुम अस्थिर है । कोई कहता है “हमारे पीछे का है? ”। ऐसा कहना ठीक नही है ।आदमी के पीछे क्या है ऐसे îकहने के बदले आदमी के पीछे क्या नही है, ऐसा कहना ठीक होगा! मै खुदा होते भी मेरे पीछे वह मिट्टी के दिवार तुम लोगोने खडी किई है । क्यौं की मै भाग न जाऊँ ।मै भी आप के पीछे दिवार खडा करना चाहतां हुँ की जो बाबां की दुआ की दीवार होगी,मिट्टी की नही !