5-4-1962 पं. पूं. हाजीबाबा
आज के दिन तुम्हारा फर्ज क्या है इसके बारे मे बाबा ने बहुत कुछ कहा है! दादा को जो बंदा रूपिया मिला है वैसा रूपिया केंद्रपर नियुक्त किया हुआ हर-एक सेवक को हम लोगो ने दिया है! दादा बंबई मे है और आप को कुछ काम है तब आप आसनपर बैठे हुवे सेवक को काम के बारेमे नही पूछते! आप तब ऐसे सोचते है की दादा को कल मिलेंगे और वैसे ही घर जाते है! यह तख्त है!सवाल जबान का नही है तो दिया हुवा दूवा का है! तुम लोग हरएक वख्त विभूती को मिलते है! लेकिन शौक से आज दरबार दादा की दूवासे चले,ऐसा कभी मन में नहि आता! हमारे वख्त का जमाना अलग था और आज का अलग है! समिती के बांरे मे हमे काफी तरह से ज्ञान नही हुवा! नींदसे जगाया तो जबान उठनी चाहिये की मुझे दूवा है समिती का! ऐसी जबान उठेगी तभी बंदा रूपिया मिलेगा! लेकिन आज आप को पूछा तो हरएक बोलता है की मुझे दूवा है बाबा का! हम विभूती का कार्य नही चाहते है तो समिती का! हम कर्म-दरिद्री है इसलीए दुवा चार आने का माँगतें है! सब भक्त समझले की आयंदा के लिए सवाल कैसा हसील करे! समिती का जो भी सेवक जीवन का तत्ववाद आबाद करने के लिए तयार हुवा उस को बंदा रूपीया मिला है और वख्त आने पर उसके साथ भी सवाल करना यही आज के दिनके लिए फर्ज है!