13-4-1962 राम नवमी शुक्रवार
हम को तुमारी जिंदगी बसानी है ।हरगिज तुमारा अच्छा ही होना चाहिये ऐसी हमे तमन्ना है ।
हमे हर रात-दिन सुबह-शाम, जितनी परेशानी रहती है की ? इस को आबाद करु वैसा तुम को तुमारी जिंदगी अच्छी होनी चाहिये ऐसी ? तमन्ना है क्या? ऒर उसके लिये क्या कोशिस करते है। आबाद होने के लिये सब प्रसाद दिये। आगे भी देंगे लेकिन तुमने खुद क्या कोशिस किया ।पहेलवान खुराक खाता है और साथ-साथ बैठक निकालता है क्यौं कि पेट बढ न जाय । तुम क्या करते है, उठते है या बैठते है? मुझे ऐसा लगता है कि मै मूर्ख हूं की जो तुम को आबाद करने कि तमन्ना रखता हूं ।
जिंदगी यह झाड है । हम और तुम दोनों मालक है और फल चाहते है। मैने पानी डाला तो तुम रक्षण करो या तुम ने पानी डाला तो मै रक्षण करु। मैने पानी डालने के बाद तुम भी जादा पानी डालोगे तो वह झाड मर जायेगा । तुम को एक दिन दुवा दिया तो वह तुम्हे सालभर निभाना है। मान जाओ की तुमने पूजन, पठण, स्मरण, धर्माचरण नही किया तो भी कम से कम दिया हुवा दुवा निभाने का काम तुमारा है। तुम इसके लिये क्या करते है, ऐसा सवाल पुछने के बाद अपने एक गुरूबंधु कहता है की हम (सब भक्त) हमे जो आदत लगायी वैसा चलते है । दूसरा कहता है हमे जो सिखलाया गया उसके मुताबिक चलते है । दो बार स्नान करते है तुमारे आरोग्य के लिय । धोती पहनते है तुमारे लिये । हमारा प्रसाद कहां अमंगल है । फकिरके प्रश्न ऐसेही आडे-तेडे होते है । मेरा प्रसाद तुम लेते है और तुमको ऐसा ऐसा करना पडेगा ऐसा कभी बोला होता तो तुम हमारे कहने के अनुसार चलते है यह आपका कहना मुनासिफ है । अबतक दुवा देते वख्व्त मै कुछ भी नही बोला । स्नान किया मलिन है इसलिये । स्नान ना किया इसलिये इधर आते है, करते होते तो आने की जरूरत ना होती। मैने क्या बोला? हमने तुमको क्या सिखाया? हमने आदत लगाइ यह कहना ठीक नही है। तुम बोलते है कि तुमारे दोस्तने तुमको चाय पिनेकी आदत लगायी और साथ साथ यह भी कहेंगे की दो समय स्नान करने कि आदत बाबा ने लगायी ? ।
माने तुमारा वह दोस्त और हम ये दोनो को तुमने एक लाईनपर लाये है। आदमी आदत से मजबूर है, आदत लगने के बाद वह छेड नही सकता । हम ने कोयी भी आदत लगाई नही, तुम ने ही बुरी आदत लगाकर लिई है । जब घोडा नया होता है तब उनको रात को चलाते है। एक बार उनको यह आदत लगी तब वह घोडा पीछे गाडीमे कोई बैठते ही चलना शुरु करता है । वह यह नही देखता की पीछे बैठा हुआ जिंदा है या मरा है । आप भी आरती को ऐसेही आदतसे बैठते है। पीछे बोजा बैठने के बाद तुरंत घोडा चलने लगता है वैसाही यहाँ अगरबत्ती और ‘गुरुर्ब्रम्हा’ कहनके बाद तुम आरती बोलना चालू करते है ।लेकिन उसका मतलब समझा क्या? हम तो मजबूर नही करेंगे । एक तास आरती चलती है । उसमे बाबा काहि ध्यान लगा ऐसे कितने भक्त है । आदत कभी अच्छी नही होती वह बुरी होती है ।
आज शामको बाबा से पीठ कर के आरती करेगा क्या? तुम तैयार नही होंगे । इस-तरफ, उस-तरफ किस तरफ बाबा नही है । मुसलमान लोग पश्चिम दिशाको पांव करके नही सोते क्यौंकी उस दिशा को काबा है । भक्त कबीर जब मदिना गये तब सोते वख्व्त पश्चिम को पाँव करके वह से गया था । यह देखकर मुल्ला मौलवी कहने लगे की तुम काफर है । कबीरने पुछा ऐसा क्यां तो बोले की पश्चिम को खुदा है और उस दिशा को अपने पाँव रखे है । तब कबीर बोला की जिस बाजू खुदा नही उस दिशा को मेरे पाँव रखो । लेकीन मुल्ला कुछ नही कर सके क्यौ की चारो ओर, और उपर भी उनको खुदा नजर आने लगे । तुमारे पास बाबा होता तो सामने तस्बीरमेही नही तो पीछे किवाडमे भी बाबा नजर आता । लेकीन तुम आदत से मजबुर है ।आज “वैभवशाली” इस गीतसे आरती चालू कीई तो आपका चित्त नही लगेगा। “या नंतर काय” यही काबार मन मे आयेगा ।सीधा ही चलना यह तुमारी आदत है ।
तुम आरती को आदत से भक्ती से या भाव से बैठते है? तुमको बाये बाजू बैठकर झॉंज बजाने कि आदत है । एक बार पिछे बिठाया तो एसा लगेगा की कहां दुनीया मे फेक दीया है किसी भी जगह बैठा तो चिंतन होना चाही ये । दुसरे के घर गया तब तुम बोलोगे की वहाँ परमात्मा का नाम नही ले सका कारण उस वातावरण मे चित्त स्थीर नही हो सका तुमारा चित्त है कहाँ, तो वह स्थीर होगा । वातावरण अनुकूल नही इसलीये नामस्मरण नही हुवा ऐसा कहनके वख्त तुम भी वातावरणको अनुकूल नही थे यह बात ध्यान मे आती है क्या? अपने अविचारसे गुरुपीठकी कितनी किंमत कम कर रहे हो!
घोङे को रातको एक चौकमें खडे रहने की आदत लगी और किसी दिन भूले से मालिक ने दुसरे चौक में खडा किया तो वह घोडा अपनी जगहपर आने बिगर छोङता नही । हम हर साल दुवा देकर उपर जाते है और नीचे क्या आवाज चला है, क्या गडबड चली है ऐसा देखने लगते है । तो नजर आता है की तुमारे जैसे भक्त उस घोङे के तरह पुनः अपनी जगह पर आये है । कभी पुछा की कैसा चल रहा है तो कभी ऐसा नही बोलोगे की बाबा की कृपा से ठिक है। इसके बदले बहोत तकलीफ है । ऐसा आप कहेंगे यह तुमारी आदत बन गई है । अब मुझे लगता है कि मोहब्बत से आये तो तुमको मिले, या तुमारे आदतसे मिले ऐसा कबतक चलेगा? आज आते ही हमने नारायणराव को पुछा क्या हुकुम है । वह कुछ बोल नही पाया । आज तक आदत यही लगी की बाबा बोलेंगे और तुम सुनेंगे । हम बात करने आये है । लेकिन बात करना यह हमारी आदत नही है । यह तुमारी आदत यह मजबूरी को दूर करके परसो हमे मिलना है ।
आज फूलोंकी सजावट किई है । फूलसे शोभा बढगइ है । ऐसे तुम कहते है तुमारे जीवन मे शोभा कब बढेगी? बाबा के जीवन मे तो हररोज नया दिन है । तुमारे जीवन मे नया दिन कब आयेगा? सुबह का चहासे लेकर रातको निंद लेने तक इतनाही नही तो कर्मविमोचन का जप तक अपका सबकुछ आदतसे चल रहा है । संकल्प कौन, तुम कौन, और जप कौन मालूम नही । आपने यहाँ भक्त है, उनकी माँ को जपकी इतनी आदत लगी है की रातको नींद मे भी उनका अंगुल हिलता है । ऐसा किया हूआ जप हम लोगोने गिना है क्या? एक जीवनकी जहाँ शहानिशा होती है ऐसै अदालत को कभी मुजरा किया क्या? हम तुमारी शहानिशा करे या तुम भी हमारी कर सकते है । तुम भी पुछ सकते है की ? इतना तुमारा नाम लीया तो भी रोटि क्यो नही देता?
कई बरसके पहले ख्वाजासाहेब आते थे तब उनकी गरमागरम बाते सुनते हुवे घबराने वाला भक्त आज हमसे भी डरता है ।इतने साल हुवे तो भी कभी मनमे नही आता की इस बाबाके जरा नजदीक जाकर मोहब्बत करे। इतने साल हुवे तो भी डरने की आदत नही जाती । मुझे ऐसा लगता है कि यदि टेलिफोनपर बोला की “बाबा, बोल रहा है” तब ये भक्त थंडा पडकर हाथसे टेलिफोन गिर जायेगा । हम इतने तुमारे लिये मजबूर है । तुम चलाते हो वह आदत हमारी नही ।परमात्माका नाम लेनेकी आदत हमने तुमको लगाई है । लेकिन अन्य ढंग तुमने लगाये है । यहाँ शामको आने के लिये कभी कभी देरी होती है ।फिर इसको नमस्कार कर नही तो उसको नमस्कार करके कहाँ से भी धोती पैदा करना और दौडते दौडते आरती को बैठना।यह आदत इतनी लगी है की कभी भूलेसे अपने भगिनीकी सफेद साडी मिली तो भी धोती समझकर तुम लोगे खुदपर इतमिनान नही की काम के कारन आने को देरी हुवी इसलिये हाथपाँव धोकर वैसे ही आरतीको बैठे। एक बार ऐसा बैठकर देखो तो की आरती का लाभ होता है कि नही।आपको खिचडी की आदत लगी इसलिये आपके उपवास छुडवाये ।साल मे एक बार मिलते है तो भी आदतसे ।
हमारी बकवास तो चलेगी, बंद करो बोला तो भी वह बंद नही होगी । दुख के लिये तुम नाम लगाते है । मैं दुवा देता हूँ । लेकिन दुख को भी मालूम है की “मै दुखी हूँ , मै दुखी हूँ ” ऐसी कहने की इसको आदत है और इसलिये तुमारा काम नही बनता ।कुंभार का गधा होता है ।माल बेचनेके लिये पीठपर लादते हुवे बाजार जाता है ।बोजा उठानेकी यह गधेको इतनी आदत लगी की वापस घर लौटते वख्त बोजा नही होगा तो वह नही चलता । फिर पीठपर दो पत्थर लादते है, फिर वह चलने लगता है । तुमारी भी यही आदत हुवी है । गधेके पीठपर दो पत्थर वैसे ही तुम को इधर एक संकल्प और उधर दुसरा संकल्प दिया है । लेकिन अबतक मालूम नही की पीछे शक्कर का बोजा है की मिट्टीका।
कही सालोके पहले की कथा है । एक राजा था । वह बादलको डरता था । शिकार को निकले तब पहले दरबारके पंडित के पूछता और पंडित ने कहा की आज बादल नही आएगा तब वह शिकार को जाता था । एक दिन राजा बडे थाटसे शिकार के निकला । रास्तेमें एक कुंभार गधे को लेकर लौट आता था ।राजाने पूछा, माल ना बेचते हुवे घर क्यौ आते है । कुंभार बोला, की अभी बादल आयेंगे îऔर इसलिये मै लौट रहा हूँ । राजा को यह कहना जचाँ नही । क्यौं कि आज बादल नही आयेगा ऐ÷से पंडित ने कहा था । आगे चलतेही थोडे समयमे बडे जोरसे बादल और वर्षा हुवी । राजा घबराकर लौट आया और दरबारके सब पंडित को कामसे दूर किया । दूसरे ही दिन उस कुंभार के लिये फर्मान निकला ।सभी कुंभार घबरा गये ।बादल के बारेमे कोई भी कुंभारने राजा के साथ बात नही की ऐसे सब कुंभार कहने लगे । सब कुंभार के राजाके सामने लाये । राजाने बात कीई हूवी कुंभार को पहचाना और उसको अपने दरबार का पंडित किया । उसको पुछा, कितना तनखा चाहिये । पहले पंडित वाकई पंडित होनेके कान उनका तनखा 500 रूपये था लेकिन यह कुंभार होनेके कान 100 रूपये तनखा उनको मंजूर हुवा । अब कुंभार दरबार का पंडित बन गया था। एक दिन राजाने ये नये पंडित को बादल के बारे मेंपूछा । तब कुंभार ने कहाँ की खाविंद, दस मिनीट मे मै आप को बतलाता हूँ ।बादमे कुंभार ने कहा की मेरा गधा है उनके कान देखने चाहिये ।बादल आनेवाला होगा तो वह अपने कान मुडपता (तेढा करता) है । यह सुनते ही राजाने कुंभार को हकाल दिया और गधे को अपने दरबार का पंडित किया ।
यह आदत क्यौ हुवी तो बचपन मे राजा को डरने की आदत लगी और उसके कान ऐसी हालत हुवी । हमारे दरबार मे भी तुम लोगोने तुमारे जीवन के ऐसे गधे लाकर खडे किये है । वह गधे बोलते है, वह आपको सच लगता है, हमारा नही । जितने संकल्प उतने विडे लगाना ऐसे कहते ही मन मे अविचार आते है । तुम पाँच विडे लगाने से मजबूर है । हम तुमको ना मिलने से मजबूर है । तुमारा मन हमारे लिये रूका है? सिनेमा का पहला खेल देखने के लिये 10 रुपये खर्चा करोगे । लेकिन विडा लगाने के लिये मजबूर है । इसके कान खुदा नजर आते ही नही दिखेगा । 1î रू. 5 आनेका विडा लगाकर बाबा को मिलने की तुमको आदत लगी है । वह बाबा को मिलने का तिकीट नही है तो वह गादी की संभावना है । इधर का फूल उधर चढा तो आपको पसंत नही आता। फुलों कभी इन्कार किया है क्या? फिर फूल चढानेवाले का इन्कार क्या? देवी को जिस फूलसे सजाया है वह फूल उठाकर अन्य देवता को देंगे क्या? तुम ना कहें गे क्यौ की अब वह फुल निर्माल्य हुवा है। तब दुसरे तस्बीर को कैसे चढाएं? ऐसा चढाने के लिये फूलने कभी इन्कार किया है क्या? वाकअी फूलने अपने आप गलना चाहिये।
तुकारामने कहां है “वाजे पाऊल आपुले, म्हणे मागे कोण आले ” उपर आवाज सुनाई दिया इसलिये नीचे हम लोग देखने लगे तो आप की ही बोंब चली है, यह हमारे नजर आया । निश्चय करके आपने सिगरेट छोडी । इसके अलावा और ही अन्य बाते हमे छोडनी है । इसके उपर अपने गैर ही नही किया । पीछे कोने मे बैठे हुवे भक्त को मैने मेरे सामने बुलाया तब अपने एक गुरुबंधु के मनमे विकल्प आता है । हमको उस भक्त को सामने बिठाना है इसलिये उन को आगे बुलाया। तुम हमारे सामने बैठेंगे और सामना करेंगे । दूसरे भक्त के जेबमेसे सिगरेट बाबा पीते है और मैने लाईे हुवी सिगरेट बाबा पीते नही ऐसा विकल्प आना ठीक नही है । इस जनम को आये और मन खराब किया । बाबाने ऐसा नही किया । उनके पास सभीके लिये मोहब्बतही है ।बच्चा है और इसलिये गलती कर रहा है ऐसा कहनेवाला खुदा अन्य जगह नही मिलेगा। तुम अच्छे ना हेते हुवे भी आपको यहाँ बिठाया । बूरीसे बूरी बात होते हुवे भी तुमारे बिगर हमको बेचैनी है यही पाच सालमे सिखलाया ।
रातको संदलका प्रसाद देते है ।लेकिन कई भक्तेका प्रसाद माने दुवाँ दूसरे दिन सुबह पाँच बजे वापस आता है । ‘उनके घर ऐसी क्या बात है की मै रहूँ’, ऐसा प्रसाद मुझे कहता है । मेरे पहाडपर जो भिकारी है इन सब को मै 12 बजे रोटी देता हूँ ।वो पहाडपर रोटी मांगते है और आप घर मे मॉंगते है । हम दुवा देते है आज भी देंगे सम्हालने की कोशिस करो । पाँच संकल्प के पाँच विडा लगाना नही बनता तो साफ कहो की बाबा, मै विडा लगाने के लिये मजबूर हूँ । ऐसे कहने से मामला खतम होता है । लेकिन ऐसे कहने के अलावा सब लोग पाँच पाँच विडा नही लगा सकेंगे । यह कहना माने सब को साथ लेकर खुद छुपना चाहता है । पाँच विडे लगाते है ।इसलिये तीन दिनसे तुम परेशान हो। कल किसीके पाससे 10 रूपिया कर्जा निकारणनेवाले है? ऐसा क्यौं करते है? हम खुदाके दरबारसे तुमारे लिये कर्जा लाते है और यहाँ तुम कर्जा निकलते है । तुमारी परेशानी बाबा जानते है । विडा नही लगाया तो क्यों नही लगाया यह बाबा जानता है और विडा लगाया तो भी वह कैसा लगाया है यह भी बाबा जानता है । विडा लगाने की आदत लगी है । आप का लगता है की यह टिकट कोई है , परवाना है । आपका ख्याल गलत है ।मोहब्बत, यही एक परवाना है ।
तुम ज्योती बनना चाहते हो की उनकी प्रभा । ज्योत बनोगे तो दुनिया को उजाला देना पडेगा । ज्योत बुझ जा सकती है लेकीन हम नही । क्यौ की दुनिया के पहले खुदाने हमको जलाया है । तुम आचार-विचार से ठीक रहो । तुमारे घरसे 4/5 रूपये यहाँ आये तो मुझे फिकर लगती, यह साचो ।बाबा तुमारे पास निरंतर रहे ऐसा कई भक्तो को लगता है ।खुदा पालना बडा तखलीफ काम है ।घरमे एक कुत्ता पाला तो आधा शेर दूध जादा लेना पडता है ।घरमें दें चूवें आये तो उनको पकडने की तुम कोशिस करते है । कुत्ता या चूहाँ आया तो इतनी बाते करनी पडती है । तब हम आप के पास निरंतर रहे तो क्या करना पडेगा, ? इसके बारेमें जरा सोचो ।
पांडुरंग के दर्शन गये थे लेकीन (पांडू = सफेद रंग ) नजर आया क्या । सफेद रंग मे सब रंग होते है लेकिन नजर एक ही रंग आता है ।पांडुरंग माने जिस के जीवन मे सफेद है वह । संसार करके इतना मजबुर बने तो हम साथ आये ता क्या होगा? हमारे दर्शनसे कोईे खुषनशीब नही बनता ।मै 24 धंटा तुमारे पास रहूँ तो तुम पाप भी नही कर सकोगे और पुण्य भी । तुम पूजा नही कर सकोगे । नौकरी नही कर सकोगे । दिनमे कई एक क्षण हम तुम्हारे साथ रहते है और उस वख्त बोलते है की “ऐसी बात मत कर। “वाकअी बाबा जीवन मे ना होते हुवे भी एक भक्तने ऐसा मान लिया की बाबा अपने पास है ऐार नौकरी छोड बैठा ।तब वह भक्त सैतान बना ।
हम जीवन मे ना होते हुवे भी आप इतने सैतान बनते है तो खुद जीवनमे आवे तो आप कितना सैतान बनोगे?